ले चलो न मुझे भी अपनी कश्ती में
ले चलो न मुझे भी अपनी कश्ती में....
तुम तो वाकिफ़ थे उन राहो से
जिनसे गुज़र कर आयी थी मैं तुम्हारे पास,
सिर्फ तुमने ही तो देखे थे कांटे मेरे पांव के,
फिर क्यूँ छोड़ दिया बीच मझधार में मुझे..
जब छलके थे आँसू पहली बार तुम्हारे सामने,
काली रातों के किस्से तुमको ही तो सुनाये थे ...
एक दौर था वो चाहतों से भरा,
वक़्त बदला और चाहतों ने दम तोड़ दिया.
इस राह में तुम मिल गए
आखिरी आस हैं तुमसे..
मत छोड़ना मझधार में,
ले चलो न मुझे भी अपनी कश्ती में।
Shrishti pandey
20-May-2022 10:28 AM
Nice
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Punam verma
20-May-2022 10:26 AM
Nice
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Abhinav ji
20-May-2022 06:55 AM
Nice👍👍
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